बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspati Dev Ki Vrat Katha) : बृहस्पतिवार व्रत श्री बृहस्पति, जो वेदों में गुरु ग्रह के रूप में जाने जाते हैं, की पूजा का एक रूप है। इस व्रत का महत्वपूर्ण स्थान हिन्दू धर्म में है और यह शुक्रवार को आरंभ होता है और सप्ताह के सातवें दिन, जो बृहस्पतिवार होता है, समाप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है, जो अपने पति के लिए उनकी दीर्घायु और सुख-शांति के लिए करती हैं।
Table of Contents
विषय | जानकारी |
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नाम | श्री बृहस्पति देव |
अन्य नाम | गुरु, बृहस्पति, गुरु बृहस्पति, ब्राह्मस्पति, देवगुरु |
वाहन | हाथी |
ग्रह | बृहस्पति (Jupiter) |
पति | तारा (तारादेवी या बृहस्पतिनी के रूप में) |
वास्तविक रूप | गोल आकृति में व्यक्ति, पीत वस्त्र, चार हाथ, एक हंस के साथ |
आराधना विधि | बृहस्पतिवार को गुरुवार के रूप में, यानी बृहस्पति की पूजा विशेष रूप से बृहस्पतिवार को की जाती है |
धरोहर | यहां कुछ पुराणों और शास्त्रों में बताए गए अनुसार, गुरु बृहस्पति सभी ग्रहों के प्रभु के रूप में माने जाते हैं। |
महत्वपूर्ण मंत्र | “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” (Om Gram Greem Graum Sah Gurave Namah) |
बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspati Dev Ki Vrat Katha) श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा
रीति: बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspati Dev Ki Vrat Katha)
सूर्योदय से पहले, सारे शरीर को स्नान करके और पीले रंग के वस्त्र पहनकर विधिपूर्वक उठना चाहिए। शुद्ध जल से घर को पवित्र करें और फिर घर के किसी पवित्र स्थान पर बृहस्पतिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उसके बाद, पीत वर्ण के गंध-पुष्प और अक्षत से पूजन करें, इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र के साथ प्रार्थना करें:
“धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥”
तत्पश्चात, आरती करें और बृहस्पतिवार की व्रतकथा सुनें।
बृहस्पतिवार के दिन के व्रत में, एक बार ही भोजन करें और उसमें चने की दाल शामिल करें। इसके बाद, बृहस्पतिवार के व्रत के रूप में केले के वृक्ष की पूजा करें।
इस व्रत के पूजन से स्त्री और पुरुष को धन, संपत्ति, और शांति मिलती है। परिवार में सुख और शांति बनी रहती है, और इस व्रत से स्त्रीयों को विशेष लाभ होता है। बृहस्पतिवार का नियमित व्रत रखने से विद्या में भी वृद्धि होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामना एँ पूर्ण होती हैं।
यहां श्री बृहस्पतिवार व्रत की कुछ महत्वपूर्ण कथाएं हैं:
कथा 1 बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspati Dev Ki Vrat Katha)
कई साल पहले की बात है, एक गाँव में एक साधू बाबा रहते थे जिनका नाम सोमदत्त था। वह बहुत तेज तपस्या करते थे और वहां रहने वाले लोग उनकी बड़ी श्रद्धा भाव से उनका सेवन करते थे। एक दिन गाँव के एक युवक ने बाबा से पूछा, “आप इतनी भारी तपस्या क्यों करते हो?” सोमदत्त ने उत्तर दिया, “मैं इससे भगवान बृहस्पति को प्रसन्न करना चाहता हूँ ताकि वह सभी लोगों को बुद्धि, ज्ञान, और समृद्धि की प्राप्ति में मदद करें।”
युवक ने कहा, “परंतु बाबा, आप तो पहले से ही बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी हैं। आपके पास सब कुछ है।” सोमदत्त ने कहा, “मैं तो अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए तपस्या कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि सभी लोग सुखी और समृद्ध रहें।”
युवक बाबा की बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसने भी भगवान बृहस्पति की पूजा करने का निर्णय लिया। वह हर गुरुवार को व्रत रखता और भगवान बृहस्पति की पूजा करता। कुछ समय बाद, वह बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी बन गया। उसे नौकरी मिली और वह बहुत धनवान हो गया। वह अपने परिवार और दोस्तों के साथ बहुत खुश रहा।
एक दिन, युवक ने बाबा से पूछा, “बाबा, आपने मुझे गुरुवार व्रत करने के लिए प्रेरित किया। मैं आपका बहुत आभारी हूँ।” सोमदत्त ने कहा, “यह तुम्हारा अपना परिश्रम है जिसने तुम्हें सफल बनाया है। भगवान बृहस्पति ने केवल तुम्हें मार्गदर्शन किया है।”
युवक ने कहा, “बाबा, मैं आपके प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए कुछ करना चाहता हूँ।” सोमदत्त ने कहा, “तुम मेरे लिए कुछ भी नहीं कर सकते। बस दूसरों की मदद करो और भगवान बृहस्पति की पूजा करते रहो।”
युवक ने बाबा की बात मानी और वह हमेशा दूसरों की मदद करता रहा। वह भगवान बृहस्पति की पूजा भी करता रहा। वह एक बहुत ही अच्छा इंसान बन गया और सभी उसे बहुत प्यार करते थे।
कथा का सार
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान बृहस्पति की पूजा करने से बुद्धि, ज्ञान, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, दूसरों की मदद करने से भी हमें बहुत लाभ होता है।
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कथा 2 बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspati Dev Ki Vrat Katha)
एक समय की बात है, एक ब्राह्मण नामक व्यक्ति अपने परिवार के साथ बड़े सुख-शांति से जी रहा था। एक दिन वह ब्राह्मण गुरुकुल में अपने पुत्र को पढ़ाने के लिए गया। गुरुकुल में उसने देखा कि एक बालक बहुत मेहनत से पढ़ रहा था, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। ब्राह्मण ने उस बालक से पूछा कि वह क्या पढ़ रहा है। बालक ने बताया कि वह एक बहुत कठिन सूत्र पढ़ रहा है।
ब्राह्मण ने उस बालक को बताया कि वह भी कभी ऐसा ही था। जब वह छोटा था, तो उसे भी बहुत कठिन लगती थीं। लेकिन उसने भगवान बृहस्पति की पूजा की और उनका व्रत रखा। कुछ समय बाद, उसे सब कुछ समझने लगा और वह बहुत विद्वान बन गया।
बालक ने ब्राह्मण की बात मानी और गुरुवार व्रत रखना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद, उसे सब कुछ समझने लगा और वह बहुत विद्वान बन गया। वह अपने गुरुकुल में सबसे अच्छा छात्र बन गया और उसे सभी सम्मान देते थे।
बालक के पिता बहुत खुश हुए। उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि उन्होंने उनके बेटे का जीवन बदल दिया है। ब्राह्मण ने कहा कि यह सब भगवान बृहस्पति की कृपा है।
कथा का सार
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान बृहस्पति की पूजा करने से बुद्धि, ज्ञान, और सफलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, मेहनत और लगन से भी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
कथा का विस्तार
इस कथा में, ब्राह्मण पुत्र को एक कठिन सूत्र समझ में नहीं आ रहा था। वह बहुत निराश था। लेकिन ब्राह्मण ने उसे बताया कि अगर वह भगवान बृहस्पति की पूजा करे और उनका व्रत रखे, तो उसे सब कुछ समझ में आ जाएगा।
बालक ने ब्राह्मण की बात मानी और गुरुवार व्रत रखना शुरू कर दिया। वह हर गुरुवार को व्रत रखता और भगवान बृहस्पति की पूजा करता। कुछ समय बाद, उसे सब कुछ समझने लगा और वह बहुत विद्वान बन गया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान बृहस्पति बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। उनकी पूजा करने से हमें बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, मेहनत और लगन से भी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
बालक ने अपने गुरुकुल में बहुत मेहनत की। वह हर दिन बहुत देर तक पढ़ाई करता था। वह कभी भी थकता नहीं था। उसकी मेहनत और भगवान बृहस्पति की कृपा से वह बहुत विद्वान बन गया।
बालक के पिता बहुत खुश थे। उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि उन्होंने उनके बेटे का जीवन बदल दिया है। ब्राह्मण ने कहा कि यह सब भगवान बृहस्पति की कृपा है।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मेहनत और लगन से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान बृहस्पति की कृपा से हमारी मेहनत सफल होती है।
ये कथाएं बृहस्पतिवार व्रत के महत्व को दर्शाती हैं और यह व्रत भक्ति और उद्दीपन का एक सुंदर उदाहरण है। भगवान बृहस्पति की कृपा से व्यक्ति जीवन में समृद्धि, ज्ञान, और बुद्धि प्राप्त कर सकता है।
विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्यों में वर्णित कथाएँ
“अलौकिक कथाएँ” विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्यों में वर्णित रहती हैं, जो आध्यात्मिक अनुभवों, अद्वितीय अनुभूतियों, और अलौकिक घटनाओं पर आधारित होती हैं। ये कथाएँ सामाजिक और धार्मिक शिक्षा में मर्मगत हैं और लोगों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करने का उद्दीपन करती हैं।