श्री राम स्तुति: प्राचीन भक्तिभावना के साथ लिपियों में उपलब्ध। इस हिंदी PDF में ‘श्री राम स्तुति’ (Shri Ram Stuti lyrics in hindi pdf) के शब्द, सार्थक अर्थ और भक्तिमय विवेचन सहित। अध्यात्मिक साधना में रूचि रखने वालों के लिए एक मौलिक स्रोत।
श्री राम चंद्र कृपालु लिरिक्स
विवरण | श्री राम |
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पूरा नाम | श्री रामचंद्र |
पति | सीता महारानी |
पिता | राजा दशरथ |
माता | कौसल्या |
जन्म तिथि | नावमी तिथि, चैत्र मास |
जन्म स्थान | अयोध्या |
धर्म | मानवता का परिपक्षी, धर्म के पुरुषोत्तम |
पराक्रम | राक्षस सम्हार, सत्य की रक्षा से मर्यादा पालन तक |
आराध्य देव रूप में | श्री राम |
राजा का पद | आयोध्या के महाराजा, मर्यादा पुरुषोत्तम |
जीवन का मूल्यवान सिख | धर्म का पालन, पतिव्रता और सत्य का पालन |
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श्री राम स्तुति इमेज
श्री राम स्तुति लिरिक्स इन हिंदी ( Shri Ram Stuti lyrics in hindi pdf )
श्री राम नवमी, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा, श्री हनुमान जन्मोत्सव और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन किया जाने वाली वंदना।
॥दोहा॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो ॥६॥
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे।
रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास
श्री राम स्तुति अर्थ सहित (Shri Ram stuti with meaning)
यह पाठ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक भजन है जो भगवान श्रीराम की महत्ता और गुणों की स्तुति करता है। नीचे दिए गए हर श्लोक का हिंदी में अनुवाद है:
दोहा: श्रीरामचंद्र, जो कृपाशील हैं, उन्हें भजो, जो संसार के भय को हरने वाले हैं। जिनके नेत्र कमल के समान हैं, मुख कमल के समान हैं, पैर कमल के समान हैं, ऐसे श्रीरामचंद्र को भजो, जो दुनिया का भय हरने वाले हैं।
श्लोक 1: कन्दर्प के अगणित रूप, नव नील और नीरद के समान सुंदर रूप में, पटपीत वस्त्रों में रत, शुचि और रुचि से युक्त, ऐसे श्रीरामचंद्र को नमस्कार करता हूँ, जो जनक की संतान हैं।
श्लोक 2: दीनबंधु, दिनेश, दानव वंश को नाश करने वाले, रघुनंदन, आनंदमय, कोशलपति, दशरथनंदन, ऐसे भगवान श्रीरामचंद्र को भजो।
श्लोक 3: शिरस्तिका, मुकुट, कुंडल, तिलक, सुंदर और उदार अंग, विभूषित होकर, आजानुबाहु, शर, और धनुष्य धारण करते हुए, खरदूषण को जीतने वाले योद्धा, ऐसे श्रीरामचंद्र को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक 4: इस प्रकार तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं वदन कमल में विराजमान भगवान शंकर की आराधना करता हूँ जो मुनियों के मन को आनंदित करने वाले हैं। हे रामचंद्र, तू मेरे हृदय के कमल में वास कर, मेरे मन को कामादि (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य) से मुक्ति प्रदान कर।
श्लोक 5: मैंने सुना है कि जो मनुष्य तुझे पूजता है, वह तेरे साथ समर्थ होता है और सहज ही सुंदरता में समान होता है। तू हे सुंदर सावरी, मेरे साथ सहज होकर मिल, तू करुणा का सागर, समर्थ और ज्ञानी है, और तू रावण को अपने स्नेह से जानता है।
श्लोक 6: इस प्रकार, माता गौरी सुनकर अपनी कृपादृष्टि से हर्षित हुई, हे अली, हे रामचंद्र सहित सीता, तू भवानी (माँ दुर्गा) की पूजा कर, और मन-मन्दिर में गयी।
सोरठा: मैं जानता हूँ कि जो व्यक्ति सीता माता के प्रति अनुकूल है, उसका हृदय हमेशा हर्षित रहता है। मंजुल, मंगलमय और वाम (बाएं) पक्ष के अभिमुख होने पर, वह अपने अंगों की शोभा को और बढ़ाता है। (गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित)