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वरुथिनी एकादशी कब है 2024 में (Varuthini Ekadashi Kab Hai 2024), प्रकार , महत्व व पूजा एवं व्रत की विधि

वरुथिनी एकादशी कब है 2024 में || Varuthini Ekadashi Kab Hai 2024

वरुथिनी एकादशी कब है 2024 में (Varuthini Ekadashi Kab Hai 2024): 4 मई, 2024 (शनिवार) को भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार वरुथिनी एकादशी है। इस एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से समस्त पाप, ताप, और दुःख दूर होते हैं और भक्त को अनंत शक्ति प्राप्त होती है। इस व्रत के माध्यम से भगवान मधुसुदन की पूजा करनी चाहिए, और सूर्य ग्रहण के समय फल स्वर्ण दान करने के समान फल प्राप्त होता है।

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वरुथिनी एकादशी कब है 2024 में || Varuthini Ekadashi Kab Hai 2024

वरुथिनी एकादशी कब है 2024 में (Varuthini Ekadashi Kab Hai 2024), प्रकार , महत्व व पूजा एवं व्रत की विधि

वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि:

  1. व्रती को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।
  2. व्रत वाले दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान की पूजा करनी चाहिए।
  3. व्रत की अवधि में तेल से बना भोजन, दूसरे का अन्न, शहद, चना, मसूर की दाल, कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। व्रती को सिर्फ एक ही बार भोजन करना चाहिए।
  4. रात्रि में भगवान का स्मरण करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व:

यह व्रत बहुत पुण्यदायी होता है। धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मण को दान देने, करोड़ो वर्ष तक ध्यान करने और कन्या दान से मिलने वाले फल से भी बढ़कर है वरुथिनी एकादशी का व्रत। इस व्रत को करने से भगवान मधुसुदन की कृपा होती है और मनुष्य के दुख दूर होते हैं, सौभाग्य में वृद्धि होती है।

पौराणिक कथा:

एक समय अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने वरुथिनी एकादशी की कथा और उसके महत्व का वर्णन किया, जो इस प्रकार है:

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा का राज्य था। वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी राजा था। एक समय जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, उसका पैर चबाने लगा। इसके बाद भालू राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा घबराया, तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए़ और चक्र से भालू का वध कर दिया। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दुखी थे। भगवान श्री विष्णु ने राजा की पीड़ा को देखकर कहा कि- ‘’मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो, इसके प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग ठीक हो जायेगा। तुम्हारा यह पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है।’’ भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ किया और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।

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