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कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf-Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf

कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf|| Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf

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विशेषताजानकारी
शीर्षककनकधारा स्त्रोत
भाषासंस्कृत
रचयिताआदि शंकराचार्य
अर्थदेवी लक्ष्मी की कृपा के लिए यह स्त्रोत है, विशेषकर धन और समृद्धि के लिए।
उद्देश्यदेवी लक्ष्मी से कृपा प्राप्त करने के लिए।
संगीत तिथि8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया था।
श्लोक21 श्लोकों से मिलता है।
महत्वयह धन आकर्षित करने और आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति के लिए पूजा जाता है।
पठनअक्सर त्योहारों और शुभ अवसरों पर पठा जाता है, खासकर शुक्रवार को।
देवीधन और समृद्धि की देवी, लक्ष्मी के प्रति समर्पित।
रचनाकथा के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने इस स्त्रोत को एक गरीब औरत की दरिद्रता को दूर करने के लिए रचा था।
लाभमाना जाता है कि इससे भक्त को समृद्धि, प्रचुरता और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
उपयोगहिन्दू रीति-रिवाज, पूजा और भक्ति के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है।
भक्तिपूर्ण पहलुसांकेतिक रूप से उदाहरणीय है, भक्त को भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि के लिए दिव्य आशीर्वाद की खोज में।
कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf|| Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf
कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf-Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf

कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf-Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

कनकधारा स्तोत्र | Kanakadhara Stotram Hindi PDF

हम सभी धन प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम उपायों की तलाश में हैं। पुराणों में कनकधारा यंत्र और स्तोत्र को धन प्राप्ति और धन संचय के लिए चमत्कारिक उपाय के रूप में वर्णित किया गया है। इस यंत्र की विशेषता यह है कि इसके लिए किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं की जाती, बल्कि इसको सिर्फ दिन में एक बार पढ़ना ही पर्याप्त है।

कनकधारा स्तोत्रम, श्री बल्लभाचार्य द्वारा रचित, माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ और कनकधारा यन्त्र को धारण करने से धन से संबंधित कठिनाइयां शीघ्र ही दूर हो सकती हैं। कनकधारा स्तोत्र धन प्राप्त करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है।

कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Kanakadhara Stotra with Hindi Meaning

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन (दीनहीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
॥ इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

FAQ-

कनकधारा स्तोत्र | Kanakadhara Stotram Hindi PDF

हम सभी धन प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम उपायों की तलाश में हैं। पुराणों में कनकधारा यंत्र और स्तोत्र को धन प्राप्ति और धन संचय के लिए चमत्कारिक उपाय के रूप में वर्णित किया गया है। इस यंत्र की विशेषता यह है कि इसके लिए किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं की जाती, बल्कि इसको सिर्फ दिन में एक बार पढ़ना ही पर्याप्त है।

कनकधारा स्तोत्रम, श्री बल्लभाचार्य द्वारा रचित, माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ और कनकधारा यन्त्र को धारण करने से धन से संबंधित कठिनाइयां शीघ्र ही दूर हो सकती हैं। कनकधारा स्तोत्र धन प्राप्त करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है।

कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने से क्या फायदा होता है?

हमारे शास्त्रों में लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्त करने के विभिन्न उपायों में से एक है कनकधारा स्त्रोत। पुराणों के अनुसार, कनकधारा स्त्रोत का नियमित पाठ करने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती हैं और धन की प्राप्ति होती है। इस स्त्रोत की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी और इसके माध्यम से उन्होंने सोने की बारिश करवाई है।

कनकधारा यंत्र को सिद्ध कैसे करें?

इस यंत्र की विशेषता यह है कि इसे किसी भी विशेष माला, जाप, पूजन या विधि की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि इसको रोज़ एक बार पढ़ना ही पर्याप्त है। साथ ही, प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती जलाना आवश्यक है। इसे किसी भी दिन भूल जाने पर भी बाधा नहीं आती, क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है।

कनकधारा स्तोत्रम कब शुरू करना चाहिए?

गरीबी या पिछले दुष्कर्मों से पीड़ित कोई भी व्यक्ति राहत के लिए, विशेष रूप से अक्षय तृतीया जैसे शुभ दिन के दौरान इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है।

कनकधारा स्तोत्रम की रचना किसने की थी?

यह भजन आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था और इसके माध्यम से उन्होंने लक्ष्मी माता की कृपा को प्राप्त किया था।

कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ pdf-Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi Pdf

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