भए प्रगट कृपाला दीनदयाला – भजन (Bhaye Pragat Kripala Din Dayala) श्रीरामावतार स्तुति, जो भगवान श्रीरामचंद्र के इस भूलोक पर आगमन की एक प्रेमभरी अनुभूति को व्यक्त करती है, वह अद्भुत है। नवजात शिशु की तरह इस स्तुति ने उन्हें बधाई दी है, और इसे सोहर और जन्मदिन जैसे खास अवसरों पर अत्यधिक प्रसिद्ध बना दिया है। इन सुंदर शब्दों को सुनने के बाद, भक्त अपने मन से और भी अधिक श्रीराम की अनुभूतियों को जानने की इच्छा महसूस करता है, और वह उन्हें अधिक सुनने के लिए अपने मन को तैयार करता है।
- Raghupati Raghav Raja Ram Lyrics in Hindi-रघुपति राघव राजा राम
- श्री सूर्य चालीसा (Surya Chalisa Lyrics in Hindi pdf) भगवान सूर्य की आराधना
- श्री गंगा आरती लिरिक्स Ganga Aarti Lyrics in Hindi: ॐ जय गंगे माता
- श्री राम स्तुति || Shri Ram Stuti lyrics in hindi pdf “श्री राम चंद्र कृपालु लिरिक्स”
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला – भजन (Bhaye Pragat Kripala Din Dayala)
छंद:
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित,
लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,
माया गुन गो पार ॥
– तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-192
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला छंद का अर्थ है:
“भगवान श्रीराम की प्रगट कृपा और दीनदया विशेष रूप से प्रकट हो रही है, जो कौसल्या के हितकारी हैं। वे हर्षित करने वाली, महात्मा मुनियों के मन को हराने वाली, और अद्भुत रूप में प्रकट होने वाली हैं। उनकी आँखें आकर्षक हैं, उनका शरीर गोपी गीत में वर्णित भगवान कृष्ण की तरह भव्य है, और उनका आयुध भूजाओं में स्थापित है। उनकी श्रृंगारी भूषा और विस्तृत नेत्र सुंदरता को अधिक बढ़ाते हैं।
सभी को कहो, जो उनकी स्तुति करते हैं, कि तुम्हारी पूजा हो, और मैं उनकी अनंत गुणों की स्तुति कैसे करूं? वह भगवान श्रीराम माया, गुण, और ज्ञान से अतीत हैं, और वेद और पुराण उन्हें बताते हैं। उनकी कृपा से सारे गुण समर्पण सागर की भांति हैं, और जिनको श्रुति संताने गाती हैं। वह हमारे लिए अनुरागी हैं, और भयउ प्रगट होते हैं श्रीकंत के रूप में।
इसके बाद, कथा कहने वाला बताता है कि ब्रह्मांड में माया निर्मित है, और सब कुछ वेदों द्वारा जाना जा सकता है। उनकी भगवती लीला हमारे हृदय में बसी है, और वह हमें हँसी की ओर मोहित करती है। जब ज्ञान उत्पन्न होता है, तो हम प्रभु के साथ मुस्काने लगते हैं, और हमने उनकी बहुत विधियों से उनकी महिमा की कहानी सुनी है। उसके बाद माता सीता ने कहा कि वह मन में डोल रही हैं और अपने पति रूपा को छोड़ने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि हमें उसकी सीता लीला को अपनाना चाहिए, जो अत्यंत प्रियसील है और जिससे परम सुख प्राप्त होता है।
आख़िरी दोहा में तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम, जो ब्राह्मण, गौ, संत, और मनुष्य रूपों में प्रकट होने वाले हैं, वे अपनी इच्छा के अनुसार तनुमानुष्य रूप में प्रगट हो रहे हैं, जो माया, गुण, और गो के पार हैं।”
यह छंद तुलसीदास जी के रचित “रामचरित मानस” के बालकाण्ड के 192 वे पंक्ति से है।